अल्सरेटिव कोलाइटिस एक ऐसी बीमारी है जिसे हम IBD के नाम से भी जानते है । अल्सरेटिव कोलाइटिस बीमारी में, बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय की अंदरूनी परत में सूजन हो जाने से कोलन अल्सर हो जाता है, जिससे रक्तस्राव होता है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस सब कोलन को भी प्रभावित करते है, लेकिन ये आमतौर पर मलाशय और कोलन के निचले हिस्से में होते है। अल्सरेटिव कोलाइटिस सूजन के कारण से कोलन अक्सर खाली हो जाता है, जिससे दस्त भी हो सकता है।
2.अल्सरेटिव कोलाइटिस का क्या कारण है?
-असामान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएँ
-बैक्टीरिया, वायरस और कवक -आस-पास का वातावरण और शरीर के बाहर के कारक
3.अल्सेरिटिव कोलाइटिस में किस तरह के डाइट का उपयोग करना है ?
-अल्सेरिटिव कोलाइटिस के में साबुत अनाज का सेवन करना लाभदाई है। जैसे की ,चावल, ज्वार, बाजरा और रागी - दालें : लाल चना, हरा चना, और काले चने की दाल आदि। -दुग्ध उत्पाद: दही, पनीर | - बीज रहित फल का भी सेवन करना चाहिए जैसे की ,सेब, केला, पपीता, अनार, नाशपाती आदि।
-अल्सेरिटिव कोलाइटिस के मरीजों को पालक, मेथी के पत्ते, धनिया पत्ते आदि का सेवन भी काफी अच्छा माना गया है।
** इस वीडियो में हम अल्सरेटिव कोलाइटिस के डाइट प्लान को समझेंगे। अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण तो आप जानते ही हैं। लेकिन सबसे जरूरी बात यह जानना है कि डाइट क्या चुनें। अगर आपको लगता है कि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, और आपकी मानसिक स्थिति इस ऑटोइम्यून बीमारी में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है, तो सबसे पहले इसे बनाए रखने के लिए आपको अपनी भावनात्मक स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना होगा,
अच्छे से रहना होगा, योग करना होगा, सुबह खुली हवा में टहलना होगा, अच्छे लोगों के साथ रहना होगा, खुशहाल जीवन जीना होगा।
तो यह मानसिक स्वास्थ्य का एक हिस्सा है। और जब हम डाइट की बात करते हैं, तो इस मामले में आप सभी तरह की सब्जियां, सलाद, फल जैसे प्राकृतिक रूप में चीजें लेंगे। आप अनाज, दाल ले सकते हैं, इससे आपको बहुत मदद मिलेगी। और कोशिश करें कि आप ज्यादा से ज्यादा सब्जियां, सलाद, फल लें।
लेकिन एक बात आपको हमेशा याद रखनी चाहिए कि इसे पूरा नहीं खाना है। आपको इसे 4-5 बार में खाना है। और बाहर की सारी चीजें जिसमें तेल, तला हुआ, मैदा, बेसन, टोस्ट, ब्रेड, नॉनवेज, शराब, धूम्रपान, होटल के आइटम हैं। आपको कोई भी पैकेज्ड या प्रोसेस्ड चीज़ नहीं लेनी चाहिए जिसमें प्रिज़र्वेटिव या केमिकल हो।
कुछ मामलों में दही और छाछ पेट के लिए कोई समस्या नहीं होती। इसलिए हम उन्हें लेने की अनुमति देते हैं लेकिन हम दूध से बने उत्पाद को कुछ समय के लिए बंद कर देते हैं। तो आप अपने डाइट प्लान में भी ये बदलाव ला सकते हैं।
लेकिन हर केस की तीव्रता और गंभीरता अलग-अलग होती है। कुछ केस प्राथमिक स्तर के होते हैं, कुछ मध्यम स्तर के होते हैं, कुछ चरम स्तर के होते हैं जहाँ पूरी तरह से भागीदारी होती है। डाइट प्लान मरीज की तीव्रता पर आधारित होता है। इसलिए जब कोई मरीज हमारे अस्पताल में, ब्रह्म होम्योपैथी हीलिंग एंड रिसर्च सेंटर में इलाज शुरू करता है, तो केस की तीव्रता को समझकर मरीज का उचित डाइट प्लान बनाया जाता है। तो सटीक डाइट प्लान आपके केस और रिपोर्ट से समझाया जा सकता है।
लेकिन मैंने आपको सटीक विवरण के लिए मूल विचार दिया है। आपको आपकी रिपोर्ट भेज दी जाएगी। और जब रिपोर्ट देखने के बाद इलाज शुरू होगा, तो आपको इन दोनों पहलुओं में मार्गदर्शन मिलेगा। आपको एक सटीक उचित आहार मिलेगा। और दूसरा, आपको भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को कैसे बनाए रखना है, इसके लिए उचित मार्गदर्शन मिलेगा।